मंगलवार, 6 नवंबर 2012

प्रकृति से खिलवाड़ की मनुष्य ऐसी ही सज़ा पाएगा |

बहता पानी बहते बहते थम जाएगा , बन के पत्थर जम जाएगा ।
लावा बरसेगा नभ से , ऐसा भी अब मंजर आएगा ।
चट्टानें चटकेंगी पत्थर टूटकर , हर ओर बिखर जाएगा ।
तारें लड़ेंगे आपस में , सूरज अपनी रोशनी बढ़ाएगा ।
इमारतें भी गिरेंगी अनिल के रुख से , युगों का साखी चाँद,
पानी में गिर के बुझ जाएगा ।
अम्ल बरसेगा बर्फ गिरेंगी , हमारा हौसला हमें छल जाएगा ।
कभी हिम बनेगा जग ये सारा , तो कभी सुलग जाएगा ।
सागर पग फैलता सब कुछ निगलने आएगा ।
प्रकृति से खिलवाड़ की मनुष्य ऐसी ही सज़ा पाएगा ।।