शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

जरा ठहर बदलेगा ये वक़्त और ये दौर भी.

जरा ठहर बदलेगा ये वक़्त और ये दौर भी,
थके हैं कदम पर हिम्मत है अभी और भी ,
कर ले पूरी हर कोशिश,
जन्म लेती रहेंगी हसरते और भी
तेरे लिए वक़्त नहीं वक़्त के लिए तुझे ठहराना है ,
इसे ठहराने वाले आए थे और भी,
जरा ठहर बदलेगा ये वक़्त और ये दौर भी.

तुझसे ही तेरी परीक्षा है ,
इम्तहानों का दौर आगे चलेगा और भी ,
भरी है उड़ान तो इसे भर और भी,
तभी दिखेगा आकाश के पार है जहाँ और भी ,
जरा ठहर बदलेगा ये वक़्त और ये दौर भी.

सहमा है मन मायुसीयों का है दौर भी ,
एक गंतव्य ही तेरा ठिकाना नहीं मंजिलें हैं अभी और भी ,
इक भंवर ही नहीं कई तुफानो से टकराना है तुझे ,
कर ले हौसला चट्टानों सा,  दूर है शाहिल अभी और भी ,
जरा ठहर बदलेगा ये वक़्त और ये दौर भी.  

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

ये वक़्त कम पड़ रहा है जिंदगी में .....

ये वक़्त का समंदर है, जो कम पड़ रहा है ज़िन्दगी में.
हौंसले बुलंद हैं पर नींद का गुलाम इंसा तड़प रहा है ज़िन्दगी में .
कुछ खुद कुछ देश के लिए करने का शोला भड़क रहा है ज़िन्दगी में .
पर खुद के वजूद से देश का अस्तित्व पिछड़ रहा है ज़िन्दगी में .
बिक जाएँगे ये चाँद तारे भी, माँ बाप की भी बोलियाँ लगेंगी ,
क्योंकि गद्दारों का वर्चस्व बढ़ रहा है ज़िन्दगी में .
किसे दोष देन किसे गुनाहगार कहें,
चंद रुपयों में ईमां, इन्सां, प्यार, वफ़ा...सब कुछ बिक रहा है ज़िन्दगी में .

ये वक़्त का समंदर है, जो कम पड़ रहा है ज़िन्दगी में.........