बुधवार, 5 अप्रैल 2023

अब बची सिर्फ मक्कारी है...



धरती बेची सागर बेचा अब आसमान की बारी है, 

हुई समस्या तब यह जाना पड़ी मुसीबत भारी है,


उम्मीद जली फिर ख्वाब जला अब अरमानों की बारी है,

खुद पर बीती तब यह जाना आई अपनी बारी है,


इंसाफ गिरा ईमान बिका अब भगवान की बारी है,

कापुरुषों से देश भरा अब बची सिर्फ मक्कारी है,


हड्डी फेंकी कुत्ते लड़वाए अब देख तमाशा भारी है,

नफरत का सैलाब उठा है खून की होली जारी है.

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