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पतझड़ के फूल
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022
टुकड़ा उनकी याद का आंखों में समाया है
वो ना होकर भी कहीं मुझ में समाया है,
किस्सा फिर उन दिनों का याद हो आया है,
जब निगाहें बोलती थी ज़ुबां की ख़ामोशी,
एहसास फिर उन दिनों का हो आया है,
टुकड़ा उनकी याद का आंखों में समाया है,
संभालते संभालते अब ये समंदर हो आया है.
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टुकड़ा उनकी याद का आंखों में समाया है
बस एक ख्याल
अंधेरों को निचोड़ा है मैंने
असली फनकार तो मर गया
सागर से कुछ बूंदें उधार में क्यों लूं
इंतहा
उसने कीमत भी दी और मुझे छुआ तक नहीं
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मेरे बारे में
अनिल ओमप्रकाश सिंह
एक सोच हूं, जो कल ख्याल बन जाएगा
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