शुक्रवार, 22 अप्रैल 2022

टुकड़ा उनकी याद का आंखों में समाया है

वो ना होकर भी कहीं मुझ में समाया है, 
किस्सा फिर उन दिनों का याद हो आया है,

जब निगाहें बोलती थी ज़ुबां की ख़ामोशी, 
एहसास फिर उन दिनों का हो आया है, 

टुकड़ा उनकी याद का आंखों में समाया है, 
संभालते संभालते अब ये समंदर हो आया है. 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें