शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

उसने कीमत भी दी और मुझे छुआ तक नहीं

उसने कीमत भी दी और मुझे छुआ तक नहीं,

उसे देख कर मुझे एहसास कुछ हुआ क्यों नहीं, 


वो क्या चाहता था उससे मैंने पूछा तक नहीं,

फ़क़ीर नहीं था क्योंकि मेरे दर तक आया था,  


उसके आंखों में थी मुझ ही को पाने की हसरत,  

फिर भी जाने क्यों उसने कुछ कहा क्यों नहीं?


ख़ामोशी की सदियां गुज़री हम दोनों के बीच, 

निगाहें बोल रही थी जज्बातों के हर अल्फाज, 


उसने पा लिया सब कुछ मुझे छुआ तक नहीं, 

मेरा लुट गया सब कुछ मैंने कुछ कहा क्यों नहीं?   

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