सोमवार, 11 अप्रैल 2022

सागर से कुछ बूंदें उधार में क्यों लूं

वक्त के सागर से कुछ बूंदें उधार में क्यों लूं,

प्यासा हूं सदियों का चंद रोज़ खैरात में क्यों लूं,

ज़िंदगी को अपनी मेहनत से तराशा है मैंने, 

फिर मौत को तुमसे उपहार में क्यों लूं .

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