वक्त के सागर से कुछ बूंदें उधार में क्यों लूं,
प्यासा हूं सदियों का चंद रोज़ खैरात में क्यों लूं,
ज़िंदगी को अपनी मेहनत से तराशा है मैंने,
फिर मौत को तुमसे उपहार में क्यों लूं .
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