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पतझड़ के फूल
गुरुवार, 21 अप्रैल 2022
बस एक ख्याल
मैं जज़्बातों को पन्नों पर बटोरता रहा लिख लिख कर
वो ग़ुम होते रहे ख्यालों की तरह...
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टुकड़ा उनकी याद का आंखों में समाया है
बस एक ख्याल
अंधेरों को निचोड़ा है मैंने
असली फनकार तो मर गया
सागर से कुछ बूंदें उधार में क्यों लूं
इंतहा
उसने कीमत भी दी और मुझे छुआ तक नहीं
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मेरे बारे में
अनिल ओमप्रकाश सिंह
एक सोच हूं, जो कल ख्याल बन जाएगा
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