गुरुवार, 29 जुलाई 2010

कल के ख्वाबों में आज धुआं होता है



कल के ख्वाबों में आज धुआं होता है ,
पर ये रूठा ख़ाब पूरा कहाँ होता है ,

जल जाती है कल के सपनों में आज की हकीक़त ,
अपनो के आंसू में सिसक कर ये अरमान जवां होता है , 

बेशक ख़ाब उसे देखने वालों के ही पुरे होते हैं ,
पर इसे पूरा करने की भगदड़ में हमें चैन कहाँ होता है, 

जितना है उतने में ही नहीं खुश होने देता ये ख़ाब हमें,
स्वार्थ और लालच को ये और बढा देता है ,

कल के ख्वाबों में आज धुआं होता है ,
पर ये रूठा ख़ाब पूरा कहाँ होता है ,

चुरा लेता है रातों की नींद जीतेजी ये जन्नत भी दिखा देता है, 
उस ख़ाब को गोली मार दो जो कंभख्त हमें गुमराह बना देता है, 

सही वक़्त पर बाहर निकाल लो अपने आप को उस ख़ाब से ,
जो मार भी देता है तुम्हे जीना सिखा देता है ,

कल के ख्वाबों में आज धुआं होता है ,
पर ये रूठा ख़ाब पूरा कहाँ होता है ,

लाखों मुस्कान दबी पड़ी हैं  इस ख़ाब के बोझ तले, 
पर हमें दर्द से कराहती इन मुस्कान को सहलाने का वक़्त कहाँ होता है,

अंत में जब ख़ाब के इस रंगमंच से पर्दा गिरता है,
ये ख़ाब किसी और की आँखों में जाकर रंग बदल लेता  है ,
हम धुंधली आँखों से देखते हैं  अपनी बिलखती मुस्कानों को , 
जो कभी हकीक़त का मंज़र था अब अफसानों  में बयाँ होता है  ,

कल के ख्वाबों में आज धुआं होता है ,
पर ये रूठा ख़ाब पूरा कहाँ होता है ....

 

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई अनिल जी आप ने मानव जीवन कि हकीकत को को ही उतार दिया है, बहुत अच्छा|
    आप ऐसे ही लिखतें रहें बहुत - बहुत शुभ कामना|

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