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पतझड़ के फूल
रविवार, 13 दिसंबर 2009
पतझड़ के फुल जरिये मैं अनिल सिंह आप लोगों के सामने अपनी कुछ कविताएँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ
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मेरी रूह भी रही भटकती
रूह की आवाज़
यथार्थ
भटका राही
शाम और मैं
मानवता ख़त्म हो गई अब.....
पतझड़ के फुल जरिये मैं अनिल सिंह आप लोगों के सामने ...
मेरे बारे में
अनिल ओमप्रकाश सिंह
एक सोच हूं, जो कल ख्याल बन जाएगा
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