पीली मुरझाई सी शाम आज फिर,
मेरे पास आई है .
शहर से दूर किसी कसबे की छाँव में,
पत्तो के झरझरहट की आवाज़ के साथ,
पंछियों चहक चाहट के साथ ,
फूलों की खुशबु के साथ,
मिटटी में खेलते बच्चों की-
मुस्कराहट के साथ ,
पीली शाम अब केसरी हो चली,
जैसे फुल बने कोई मासूम कली.
दूर लोगों को घर जाते देख ये भी ,
जाने की बात करती है .
रात के भयानक अँधेरे से शायद ये भी
डरती है .
कल का वादा करके हम चले,
शाम तो आइ पर मैं न आ सका……..
सोमवार, 21 दिसंबर 2009
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