सोमवार, 28 दिसंबर 2009

मेरी रूह भी रही भटकती

जीते जी न सुकूं मिला,
न मर के भी चैन आया मुझको।
मेरी रूह रही भटकती,
क्यों ऐसी जगह दफनाया मुझको।
हसरत थी की उनकी बाहों में मरेंगे ,
अंत समय वो भी नसीब न आया मुझको।
सब कुछ हांसिल होकर भी ,
कुछ न मिल पाया मुझको।
ग़म से ही रिश्ता रहा जीवन भर ,
ख़ुशी ने बहुत तड़पाया मुझको।
ख़ुदसे ज़्यादा यकीं था जिसपर,
मझदार ही में छोड़ गया वो साया मुझको ।

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