किसी ने आवाज़ दी है , मुझे दुनिया के उस पार से ,
अनजान महफ़िल में क्यों फंसे हो,
मुझे बेजान छोड़कर।
धिक्कार है ऐसे जग में जीना ,
जीते हो लोग जहाँ अपना ईमान तोड़कर।
क्यों जीते हो तुम जब मर जाते हैं ,
अपनी जमीन किसान छोड़कर।
क्या पाते हो लेकर भीख,
अपना काम छोड़कर।
बटोरा है धन जिसके लिये ,
कल आएँगे यही तुम्हे स्मशान छोड़कर।
मेरी रूह की थी ये आवाज़ मेरे मन के उस पार से .....
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
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yatharth ko ujagar karti huyi.
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